आचार्य चाणक्य ने चार ऐसे दोस्तों के बारे में बताया है जो मरने के बाद भी साथ निभाते हैं तो चलिए बताते हैं आपको।
माता-पिता, बहन, परिवार ये वो रिश्ते हैं जो उसे जन्म के साथ ही मिल जाते हैं लेकिन दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जिसे इंसान खुद बनाता है और शायद यही वह रिश्ता है जो चाणक्य ने भी सबसे खास माना है। नीति शास्त्र के महान ज्ञाता आचार्य चाणक्य ने इसी रिश्ते को लेकर अपनी नीति में कई बातों का उल्लेख किया है। चाणक्य चार ऐसे मित्रों के बारे में उल्लेख करते हैं जो मरने के बाद भी साथ निभाते हैं तो, आइए आपको बताते हैं कौन से हैं वह चार मित्र…..
विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्र गृहेषु च।
व्याधितस्यौषधं मित्र धर्मो मित्रं मृतस्य।।
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- इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने घर से बाहर यानी परिवार से दूर रहता है उसके लिए ज्ञान सबसे बड़ा मित्र है। यह ज्ञान ही है जो अपने से दूर रहने पर आखरी समय तक उस का साथ निभाता है।
- चाणक्य की मानें तो जिसकी पत्नी, पति की सबसे अच्छी मित्र होती है उसे समाज में हमेशा मान-सम्मान प्राप्त होता है। अगर पत्नी अवगुड़ी है तो, कई मौकों पर उस व्यक्ति को अपमान का सामना करना पड़ता है। पत्नी का साथ पति को हर कठिन समय में संयम देता है और परेशानी से लड़ने में ताकत देता है।
- बीमार व्यक्ति के लिए दवा उसकी सच्ची दोस्त होती है। चाणक्य कहते हैं की दवा ही बीमार व्यक्ति को ठीक कर सकती है और आखिरी समय तक उसका साथ देता है।
- अपने श्लोक के अंत में धर्म को चाणक्य ने मनुष्य का चौथा सबसे बड़ा मित्र बताया है। चाणक्य कहते हैं की किसी भी व्यक्ति के लिए धर्म के मार्ग पर चलते हुए उसके जिंदा रहते हुए किए गए काम ही लोगों द्वारा याद किए जाते हैं। इस दौरान वो जैसा पुण्य कमाता है मरने के बाद उसे वैसे ही याद किया जाता है।